"देवर जी, हमको जाने दीजिये। ५० पार इस बुढ़िया के साथ ऐसा कुछ मत करिये जिससे हम भी लज्जित हों और घर की इज्जत भी जाए।" महोबा ने हाथ जोड़ा।
"अरे हम तो सिर्फ गांव देखने आये हैं और जब यहाँ कोई है भी नहीं तो हमको सब देखने दीजिये!" इतना कहते ही सुधांशु ने महोबा को कस कर पकड़ा और अपनी पूरी ताकत से उसपर खुद को झोंक दिया। वैसे भी जिनका मानसिक संतुलन बिगड़ा होता है उनके अंदर ताकत गज़ब की होती है और वो जो चीज़ करते हैं उसपर पूरी ताकत आज़माते हैं। यहाँ महोबा का दिमागी संतुलन ठीक होकर असहाय था। सबसे असहाय तो वो कुल्हाड़ी थी जिसे रोज़ लाया जाता था और पेड़ के सहारे टिका दिया जाता था।
इस कुल्हाड़ी की किस्मत भी गज़ब की थी। उस दिन के बाद आज फिर दिवार के सहारे टिकी हुई थी। आज तो औरतों का जमघट था महोबा के आँगन में।
"आजी, ऐसे कैसे चलेगा? कभी हम, कभी आप, कभी कोई और। अब तो रोज़ का नियम जैसा बन गया है।" गुलबिया ने कहा।
"चाची, अब शादी कर दो नहीं तो ये कहीं नहीं रुकेगा। छोट जाति वाले जल्दी मुँह नहीं खोलेंगे, लेकिन हम कहाँ जाएँ? घर में पता चला कि हम पेट से हैं तो बहुत बड़ा बवाल होगा।" जमुनिया ने कहा।
"कुछ तो करना ही पड़ेगा रे, नहीं तो घर की इज्जत बचाते-बचाते लगता है गाँव के हर घर की इज्जत चली जाएगी।"
औरतों का प्रपंच घर के आँगन में हो जाता है लेकिन मर्दों की जुगाली अक्सर किसी चौपाल या पेंड़ के नीचे लगे चाय-समोसे की टपरी के पास ही होती है।
"सुशांत भैया, ऐसे कैसे चलेगा? गाँव की बहु-बेटी के साथ ऐसा होगा तो क्या सब कहेंगे? आप प्रधान हैं इसलिए अभी किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही।"
"अगर ठाकुरों में ही ये सब चलने लगेगा तो सब सही कैसे होगा प्रधान जी? शादी कर दीजिये, चालीसा लग चुका है, शादी होगी तो घर में ही लगा रहेगा।"
सुशांत ने पास खड़े सुधांशु को देखा जो इन सबसे बेखबर धूल में खुद के साथ खेल रहा था।
"ऐसे कैसे शादी कर दें? तब भी तो किसी की जिनगी ही बर्बाद करेगा।" सुशांत ने अपनी दलील दी।
"अरे चाचा, किसी एक की ही जिनगी बर्बाद होगी, पूरे गाँव की तो नहीं करेगा। संभाल लो, नहीं तो कहीं किसी का गुस्सा फूटा तो सुधांशु को अपना प्राण और आपको अपना भाई खोना पड़ेगा।" ये थोड़ा तेवर में कह दिया था किसी ने।
खैर, दिन बीत रहे थे लेकिन समस्या जस की तस थी। अब ऐसे में भगवान का ही सहारा था जो सबकी इज्जत बचाए। एक दिन अचानक पुलिस की टीम भी गाँव के धूल का मजा लेने के लिए समेसी पहुँच ही गयी। और सीधे पहुँची प्रधान के घर। पुलिस के करीब आते ही कुछ लोग निकल लिए और बाकी सब अपने काम में लग गए। सुधांशु भी वहीं था। महोबा एक खंबे के पीछे उसी कुल्हाड़ी की तरह टिकी थी, मतलब ओट लेकर छुपी हुई थी। (क्रमशः)