My Truthful Poem ...!!!
आँटि-अंकल के संबोधन से गिला है
अक्सर लोगों को 40+ पर शिकवा है
उम्र के इस पड़ाव पर भी हम तो ख़ुश है
तंदुरुस्त है रब की बस यही नेअमत है
जी कर यहाँ से जाना तो सब को है
फ़िर बढ़ती उम्र से हिमाक़त-सी क्यूँ है
हर किसी के बस में नहीं माना उम्र की
ढलती शामों में भी ख़ुशहाल रह पाना
पर मिट्टी से मिट्टी का मिलन तय ही है
फ़िर क्यों ना जीदगीं के इस पड़ाव को
भी वही उत्साह-ओ-चाव़ से जी जाना
प्रभुजी की बनी हर घड़ी सर ऑंखो पर
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-Rooh The Spiritual Power