My Devil Act Reflecting Poem...!!!
दिल का दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा
मैं बेचैन-सी थी कल, रातभर लिखती रही
छू रहे थे लोग यहाँ बुलंदियाँ आसमान की
मैं सितारोंके बीच,चाँदकी तरह छिपती रही
दरख़्त होती तो,कब की टूट गई होती में,थी
नाजुक डाली,जो सबके आगे झुकती रही
परछाईं पनपती आफ़ताब की पनाहगाह में
बिना आफ़ताब के तो परछाई भी छुटती रही
हस्ती भी हयात में हवाओं का रुख़ साँसों की
आवन-जावन के मिज़ान से नापती रही
जी हालातों के मिज़ाज तो कुछ अच्छें ना थे
पर एक में थी मिज़ान के तराज़ू तोलती रही
नियतों से पता हर राहगीर की नज़र देती थी
नियति 🖊 क़लम की रवानी पर चलती रही
बंद-हवासों-सी लहरें हैवानियत यहाँ बिखेरे
जिस्मों से भी”रुँहो” की दूरियों बढ़ती रही
जान हवस की शिकार नोचती सिसकती
तड़पती बिलबिलाते भीख़-सी माँगती रही
ख़ुदगर्ज़ी के अँधेरे शैतानी दिमाग़ों से शोले
उबालें बहसीँ दरिदगीँ सीमाएँ तोड़ती रही
एक अकेली में पल पल मौत के क़रीब जाती रहीं
ज़ालिम-ओ-नराधम जिस्मों की 🔥बूझतीं रहीं
प्रभुजी भी खामोश तमाशाइयों से बनते रहे
ओर बाबुल-ओ-जनेता की परी जहाँ छोड़ चल बसीं
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