शीर्षक: तुम और मैँ
दरमियाँ, तुम्हारे और मेरे जो कुछ होता
जिंदगी को, उसी से आगे बढ़ने को होता
करने को वक्त, बहुत कुछ हमारे लिए करता
हम ही जिम्मेदार, बीच कोई समझौता न होता
कल् तुम कुछ और रुप में जिंदगी को समझोगे
ठहर गया मैं कहीं, शायद तुम वहाँ न रुक पॉओगे
हाँ, हम तुम दो पुतले है, रंगमंच के दोनों दावेदार
गम और खुशी के, दोनों को निभाने वाले अदाकार
अभिनय में कौन कितना होशियार, न कभी कहना
जग एक रंगमंच है, किसी को तो खलनायक बनना
मेहरबां होता जब दर्शक, ताली बजा स्वागत करता
चूक अगर नायक से हुई, तो उसे भी, वो न बख्शता
✍️ कमल भंसाली