"सावन मिलन"
कल कल करती नदिया
छम छम करती बरसात
सावन की वो भीगी रात
अहसास भरे हुए जज्बात
तुम्हे याद है ना, बोलो ना
कंपकपाता, सुनहरा बदन
जिस्म से लहराती, अंगड़ाई
केशूओ से छिटकती, मस्ताई
गालों पर झूमती, बुँदे शरमाई
तुम्हे याद है ना, बोलो ना
सोचने की बात है, मन भावन
मोसम सावन या जिस्म सावन
संगम हो तो, बन जाते, पावन
अधर-नृत्य करती, हर धड़कन
तुम्हे याद है ना, बोलो ना
पुष्पों ने ली,मधुरता की कसम
भौरों ने भी गुनगुनाने की, सनम
पवन ने भी लहराने की, प्रियतम
सात सुरों का हो रहा था, स्व-संगम
तुम्हे याद है ना, बोलो ना
कमल भंसाली