Hindi Quote in Poem by Ajay Amitabh Suman

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

आश्वस्त रहा सिंहों की भाँति गज सा मस्त रहा जीवन में,
तन चींटी से बचा रहा था आज वो ही योद्धा उस क्षण में।
पड़ा हुआ था दुर्योधन होकर वन पशुओं से लाचार,
कभी शिकारी बन वन फिरता आज बना था वो शिकार।

मरना तो सबको होता एक दिन वो बेशक मर जाता,
योद्धा था ये बेहतर होता रण क्षेत्र में अड़ जाता।
या मस्तक कटता उस रण में और देह को देता त्याग ,
या झुलसाता शीश अरि का निकल रही जो उससे आग।

पर वीरोचित एक योद्धा का उसको ना सम्मान मिला ,
कुकर्म रहा फलने को बाकी नहीं शीघ्र परित्राण मिला।
टूट पड़ी थी जंघा उसकी उसने बेबस कर डाला,
मिलना था अपकर्ष फलित सम्मान रहित मृत्यु प्याला।

जंगल के पशु जंगल के घातक नियमों से चलते है,
उन्हें ज्ञात क्या धैर्य प्रतीक्षा गुण जो मानव बसते हैं।
पर जाने क्या पाठ पढ़ाया मानव के उस मांसल तन ने ,
हिंसक सारे बैठ पड़े थे दमन भूख का करके मन में।

सोच रहे सब वन देवी कब निज पहचान कराएगी?
नर के मांसल भोजन का कब तक रसपान कराएगी?
कब तक कैसे इस नर का हम सब भक्षण कर पाएंगे?
कब तक चोटिल घायल बाहु नर रक्षण कर पाएंगे?

पैर हिलाना मुश्किल था अति उठ बैठ ना चल पाता था ,
हाथ उठाना था मुश्किल जो बोया था फल पाता था।
घुप्प अँधेरा नीरव रात्रि में सरक सरक के चलते सांप ,
हौले आहट त्वरित हो रहे यम के वो मद्धम पदचाप।

पर दुर्योधन के जीवन में कुछ पल अभी बचे होंगे ,
या गिद्ध, शृगालों के कति पय दुर्भाग्य रहे होंगे।
गिद्ध, श्वान की ना होनी थी विचलित रह गया व्याधा,
चाह अभी ना फलित हुई ना फलित रहा इरादा।

उल्लू के सम कृत रचा कर महादेव की कृपा पाकर,
कौन आ रहा सन्मुख उसके देखा जख्मी घबड़ाकर?
धर्म पुण्य का संहारक अधर्म अतुलित अगाधा ,
दक्षिण से अवतरित हो रहा था अश्वत्थामा विराधा।

एक हाथ में शस्त्र सजा के दूजे कर नर मुंड लिए,
दिख रहा था अश्वत्थामा जैसे नर्तक तुण्ड जिए।
बोला मित्र दुर्योधन तूझको कैसे गर्वित करता हूँ,
पांडव कपाल सहर्ष तेरे चरणों को अर्पित करता हूँ।

भीम , युधिष्ठिर धर्मयुद्ध ना करते बस छल हीं करते थे ,
नकुल और सहदेव विधर्मी छल से हीं बच कर रहते थे।
जिस पार्थ ने भीष्म पितामह का अनुचित संहार किया,
कर्ण मित्र जब विवश हुए छलसे कैसे वो प्रहार किया।

वध करना हीं था दु:शासन का भीम तो कर देता,
केश रक्त के प्यासे पांचाली चरणों में धर देता।
कृपाचार्य क्या बात हुई दु:शासन का रक्त पी पीकर,
पशुवत कृत्य रचाकर निजको कैसे कहता है वो नर।

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111730518
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now