शीर्षक: नव पथ का दावेदार
वक्त रुठा रहा, पर जिंदगी चलती रही
कहीं वफ़ा, कहीं बेवफाई थकाती रही
मुकद्दर का, अपना ही अंदाज था
मुझे अपने योंही चलने पर नाज था
कशमकश के, जब भी कोई क्षण आते
उन्हीं में से छण कर, कुछ गंभीर हो जाते
ये जीवन है, मन के बुलबुले कुछ समझाते
पंख बन कर, चिंतन के बिंदू, सुलझ जाते
काँटों की कितनी हस्ती ? फूल तो खिलते
मुस्कान की हल्की डाली, पर ही मुस्कराते
जीवन विशेष तो कदम मंजिल को तलाश ही लेते
गम की कहां औकात ? जो खुशी के आंसू रोक पाते
तलाश, मकसदों के लिए नव-पथ निर्माण करता
जीना एक कला है, दिल को, अब यही समझाता
ह्र्दयगार के भाव, मेरे स्वं चिंतन के जब दीप जलाते हैं
मंजिलों के ज्योतिर्मय पथ पर, कदम स्वतः बढ़ जाते है
✍️ कमल भंसाली