Hindi Quote in Poem by Kamal Bhansali

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शीर्षक: अहसास का दर्द

आसमान कितना दूर ?
फिर भी, कितनी धूप ?
अतीत के प्रांगण, प्राचीर पर
तुम्हारी स्मृतियों के अवशेष
आज भी मेरे,जेहन को
नाख़ून से खरोंचते
पता नही, क्यों,अब भी
मुझ में, तुमको तलाशते

कोलाहल, कब शांत होते
कब शांत हुई
अतृप्त, इन्द्रधनुषी आस्था
फूल सी चन्दन काया को
प्रणय और मिलन से सजाती
पर, संस्कारों से बंधी रहती
सलवटों से बंधी चादरें
तेरे आलिंगनों को ढूँढती

मर्म के पन्नो पर
तुम्हारी यादें
पता नही क्यों इतने हाशिये
बिन आकार के
नयनों से खींचती
दर्द में भी, मासूमियत से
अपने होने का, सबूत माँगती
फिर, हर स्मृति के दीपक को
हथेलियों से बुझा देती

नाकामियों का पुलिंदा, कागज का
कहकर, तुम बांहों में
अपना चेहरा सटा देती
आखिर, कितना मुस्कराती
खिड़की के दो पट पर
कुहनी पर टिका, तेरा इंतजार
अब दर्द की भेजते, तस्वीर

आज भी आम का वो पेड़
मेरी नाकामी को नहीं
बंद खिड़की को सहलाता
उनकी खरोंचों में
तेरे, अस्तित्व को तलाशता
अपनी ही, उदासियों में डूब जाता
फिर, वही गहन तमस
फिर वही, गलियारा यादों का
फिर वही, अँधियारा मन का
और
तुम्हारे न होने का अहसास, तन का
***> कमल भंसाली

Hindi Poem by Kamal Bhansali : 111729683
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