दीप हो जो मन के,तो दिव्य ज्ञान हो जलो,
कठिनाई अभी भी है इस डगर,में बाकी बहुत...!
बिना रुके हो दृढ़,जो चल सको तो चलो,
कौन कहता है, कि जिन्दगी बहुत छोटी है?...!
शायद! मालुम नहीं राज उन्हें,इसे बेतरतीब ढंग से जीने का,
कथानक रस जिंदगी के, हर किस्से का पीने का..!
मेरी नजर में, तो निरे मूरख हैं वे लोग,
जो इन राहों में चलते कम,सुस्ताते ज्यादा हैं..!
भय को छोड़-कर जय से गठजोड़,जो आगे बढ़ सको तो चलो,
इन भीतर के जंगों से बिन ढले, खुद ही लड़ सको तो चलो...!
#सनातनी_जितेंद्र मन कहेन
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