शीर्षक : वो पिता ही होता
जो खुद आंसुओं से, संतान को नहाये फूलों से
वो पिता ही होता, जो हर समय दिखे, असहाय से
परेशानियों का करके सफर, जो सदा मुस्कराता
वो पिता ही होता, जो हर कष्ट को स्वयं झेल जाता
असंयमित श्रम कर, जो सदा ही संयमित रहता
वो पिता ही होता, जो कभी शिकायत न कर पाता
स्वयं के भाग्य से अंजान, संतान का भाग्य सजाता
वो पिता ही होता, भूखे रहकर संतान को आगे बढ़ाता
कहने को बहुत कुछ, पर तमाम जिंदगी न कह पाता
वो पिता ही होता, जो बुढ़ापे के लिये कुछ न कर पाता
संतान जब कुछ बन जाता, सब कुछ देखा भूल जाता
वो पिता ही होता, जो जाते,जाते, उसे क्षमा कर जाता
✍️कमल भंसाली
-Kamal Bhansali