ये गलियाँ हैं
उस बचपन की जहाँ
मन अक्सर ठहर जाता है,
कड़ी धूप में भी
छाया होती थी स्नेह की
और बारिश की बूंदों में
खिलखिलाहटें लबों पर मचलती थीं|
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मेरी आदत में
शामिल था पापा का साथ
वो भी शाम को
जब आफिस से लौटते तो
कुछ पल बचाकर लाते थे
जेब में मुस्कराहटों के,
कभी ले जाते घुमाने
कभी खेलते
मेरी पसंद का कोई खेल
जिसमें तय होती थी जीत मेरी
हार के पलों का
उदास चेहरा उन्हें मायूस कर जाता था|
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