शीर्षक: क्यों न करुँ ?
जीवन की हर रस्म में
हर गम को सहन करने वाला
वो, मेरा दिल ही तो है
क्यों न, इससे ही प्यार करुँ ?
हर रिश्तें की चाहत पर
जो न्यौछावर हुआ
वो, मेरा दिल ही तो है
क्यों न, इसका इकरार करुँ ?
उम्र की ऊंची नीची पगडंडियों पर
बिन रफ्तार खोये, साथ चला
वो, मेरा दिल ही तो है
क्यों इससे, मैं इंकार करुँ ?
घायल हुआ दुनिया के दस्तूरों से
बिन शिकायत धड़कता रहा
वो मेरा दिल ही तो है
क्यों न, इसका इकरार करुँ ?
जिस्म की हर कमजोरी को
हर पल सहा
वो मेरा दिल ही तो है
क्यों न, उसका शुक्रिया अदा करुँ ?
जन्म से पहले से
मृत्यु तक की यात्रा का हमसफर
निर्धन पर निडर
वो मेरा दिल ही तो है
क्यों न, उसका ही गुणगान करुँ ?
रचियता✍️कमल भंसाली