विषय: ननिहाल
हो जाता मन 'स्नेहिल', याद आता जब ननिहाल
नाना, नानी के चरणों मे, बिता बचपन बेमिशाल
गाँव में बिता जन्मदिन, बन जाता बेहतरीन सौगात
खेत, खलिहानों में हंसते खेलते, गुजर जाते दिन-रात
ननिहाल, बने हुए, आपसी रिश्तों का महत्व समझाता
संस्कार के गुलदस्ते में, हर रिश्ते के स्नेह फूल दिखलाता
छुटियाँ जब स्कूल के बंधन से, कुछ दिन आजाद कराती
दिल के भँवरों की,उत्पाती गुंजन की लालसा जाग जाती
शैतान दिल कब मानता, ऊंचे पेड़ो पर चढ़ जाना होता
लड़खड़ाती टांगों से दिन की, करतूतों का भाँडा फूटता
सच कहता, काश बचपन, वैसे ही वापस लौट आता
ननिहाल जाने का दस्तूर, ससुराल तक न सिमट पाता
रचियता : कमल भंसाली
-Kamal Bhansali