आसमान की ऊंचाई से गिरती बारिश की इन बूंदो को देख …
सोचा...चलो ...
कुछ अर्ज़ किया जाए...!
चमचमाती चमकीली-सी इन बूंदों को देख…
सोचा…चलो…
इनकी खूबसूरती को शब्दों में पिरोने की कोशिश की जाए...!
आकाश के उस छोर से गिर खुद को मिट्टी में मिला फ़ना होते इन बूंदों को देख…
सोचा…चलो…
किसी की मोहब्बत में कुछ इस तरह फ़ना हुआ जाए…!
अम्बर में अम्बुद के साथ अठखेलियां करती इन अम्बु कणों को देख…
सोचा…चलो…
कुछ इन-सी शरारतें की जाएं…!
इन शीतल बूंदों को छूकर गुज़रती..हवा के ठण्डें झोकों को महसूस कर…
सोचा…चलो…
किसी के लिए इन सुकूनदेह झोंको-सा बना जाए…!
मिट्टी पर गिर.. मिट्टी को खुद में समेटने के बाद..
मिट्टी मिली इन जल की बूंदों को देख…
सोचा…चलो…
कुछ इन-सा सब्र और चाहत संजोई जाए…!
अम्बर और धरा को जोड़ने वाली इस प्यार-सी कड़ी..इन बूंदों को देख…
सोचा… चलो…
हर इंसान के बीच प्रेम की डोर बन प्रेम जगाया जाए…!
एक साथ गिरती और एक साथ बन्द होती इन बूंदों को देख…
सोचा…चलो…
कुछ इनकी तरह रिश्तों को समझने की इक छोटी-सी कोशिश की जाए…!
नाजु़क-सी पत्तियों पर ठहरी इन बूंदों को देख…
सोचा… चलो…
इन कुदरती हीरों से खुद का श्रृंगार किया जाए…!
इन बूंदों से मिलने…इन्हें समझने के बाद…
सोचा…चलो…
कुछ इन बूंदों-सा बना जाए…!
- नैना गुप्ता 'अंकिता'
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