Hindi Quote in Poem by Kamal Bhansali

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शीर्षक: अलविदा

अलविदा” ही कहा था
मैंने
तुम्हारे नैन भर आये
कुछ दर्द के साये
जो तुमने मुझ से छिपाए
अफसोस ही कह लो
साथ चले, पर दिख नहीं पाये
पता नहीं आज
कैसे सामने उभर आये?
गम की कोई किताब होती
तो सब कुछ समझ जाता
तेरी बेवक्त मुस्कान में
दर्द, तुम्हारे तलाशता
पीकर उन्हें शायद
शकुन से विदा लेता
जग में “प्यार” को
अपनी मंजिल समझा देता
होठ, तेरे,
अब क्यों थरथराते
मेरे “अलविदा” पर
शब्दों को चिपका कर
दर्द, तेरे, छिपा ते
औदास्य, चेहरे में
समा ये, निः स्पृही राज गहरे
बाहर आ रहे
आज ही, क्यों सारे ?
तुम्हारी चुप्पी को
बन्धन समझ
साथ निभाता रहा
कुछ शंकाओं के फूल
तेरे जुड़े में सजाता रहा
अनचाहे समर्पण में
अपनी ही आत्मा तलाशता रहा
कब ख्याल करता
औरत के दिल में क्या, क्या होता ?
बदन के हर हिस्से को छुआ
अगर एक कोना
तेरे, मन का टटोल लेता
तो सच कहूं
मुझे, “अलविदा” न कहने का
भी, अफसोस नहीं होता…..”कमल भंसाली

Hindi Poem by Kamal Bhansali : 111712216
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