सामने से वार करनेवाला
दुश्मन कहलाता है
और रिश्तों में फ़रेब करनेवाला
दोगला गदादार गिना जाता है
एक कहावत है...
लाख दुश्मन ही वो सही
पर कोई गदार नहीं होना चाहिए....
फ़रेब करनेवाला निजी स्वार्थ में,चंद लाभ में, या अहंकार में
छद्म रचकर गिरगिट की, तरह रंग बदली कर अलंकारिक लब्ज़ों से
रची मकड़ी की ज़ाल में फँसाकर रिश्तों पर वार करता है
तब, मनोमन बहुत प्रसन्न होता है,अद्भुत संतुष्टि को पलभर के लिए पाता है,
पर, वो सृष्टि के अकाटय से सत्य को भूल जाता है,की..
जो जैसा करेगा, वैसा ही पायेगा
जो जैसा बोवेगा, वैसा ही फल पावेगा
फ़रेब करनेवाला वक़्त बदलने पर
खुद भी इस फ़रेब का बड़ा शिकार बन जाता है
खुद चोर के घर कोई बड़ा डकैत चोरी कर जाता है
वो वक़्त की संतुष्ठी कभीकभी अंत्येष्ठि में बदल जाता है...
ये ही असल सत्य है, जो ना बदला है, ना बदलेगा..
जो भला करेगा उसका भला होगा, जो बुरा करेगा उसका बुरा होगा
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#आर्यवर्त