मेरा गांव...
गर्मी की चुभन पर कूलर से बेहतर
वह पीपल का छाव ही अच्छा है
तेरे इस बनावटी शहर से
मेरा गांव ही अच्छा है
सुबह-सुबह गउ माता का आवाज ,
सुख दुख में एक हो जाता समाज ,
शहर बसा कर तुम तो गांव ढूंढते हो ,
हाथों में छुपाकर कुल्हाड़ी तुम छांव ढूंढते हो ,
हर दिल में प्रेम का रिश्ता जिसे निभाता हर बच्चा है,
तेरे इस बनावटी शहर से मेरा गांव ही अच्छा है.
पर अब कुछ खलल हो गई है ,
यहां के सांझ और भोर में ,
मेरे गांव वालों को मोह लिया ,
तेरे शहर के इस शोर ने ,
शायद भूल गए जो कार में घूम रहे हैं ,
उसे बनाने वाले भी नंगे पांव से आए थे,
यह जो चमकता सूर्य सा गुलशन शहर ,
उसे बनाने वाले भी मेरे गांव से आए थे ,
प्रेम विश्वास स्नेह और सम्मान का फल ,
तेरे शहर में अभी भी कच्चा है,
मैं अभी भी कहता हूं तेरे बनावटी शहर से ,
मेरा गांव ही अच्छा है.....