प्रस्तुत है मेरी कविता
*अदृष्य विषाणु *
अदृष्य विषाणु- युद्ध विषम
हो रहा वंश-संहार
भरत-भूमि के वंशज को
यह सर्प रहा ललकार
उठा शतकोटि भुजाओं को
कर सिंहनाद भारत जागो
तुम विज्ञान- ज्ञान युग नायक
दारुण व्याकुलता त्यागो
जननी जन्मभूमि आहत है
इसके ताप का शमन करो
अभिशप्त किया जिसने जन मन
उस पापी का दमन करो
है प्रपंच मानव- बलि का
रक्षक तुमको बनना होगा
विषचक्र लौट के आएगा
कुचक्र विफल करना होगा
तमस ग्रस्त-रौरव वीभत्स
विश्व- शान्ति कैसे होगी
ध्रुवशक्ति धरो अंतर्मन की
वीरों ने धरती भोगी
साम दाम औ' दंड भेद से
यह षड्यंत्र करो खंडित
भारत का ओजस्वी मस्तक
करो पुनः गौरवमंडित !
: नीलम वर्मा
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