My Truthful Poem...!!!
यारों मोहब्बत को ही जब लोग
इश्क़ का खुदा मानते हैं
फिर इश्क करने वाले दिलों को
ही लोग बुरा क्यूँ मानते हैं
ग़र जमाना ही पत्थर दिल हैं फिर
पत्थर से दुआ क्यूँ मांगते हैं
आज नाराज़गी ग़र प्रभुजी की है
तो बेवजह तो हरगिज़ नहीं
चंद साल पीछे मुड़ के देखोगे तो
नदियाँ खून की सरेआम थी
पोलिटिकल या यूनिवर्सिटी या हो
जाती के नाम, होली खून थी
मसलें शायद कम न थे तो उस पर
आबरु बच्चियोंकी नीलाम थी
भगवान को भूलें बेठा हर इन्सान था
प्रभुजी सिर्फ़ तस्वीरों में क़ैद थे
ज़्यादती जब हदों की सभी सीमाएँ
तोड़ नंगा नाच करने चलीं थी
तब प्रभुजी असली रुप धारण कर
इन्सानों को सबक़ शिखाने आए
अति-सूक्ष्म कीटाणुओं से स्वयं ही
मानवीय-मूल्यों-रक्षा करने आए
हर आदमी को अपनी औक़ातों की
क़ीमतों से अवगत कराने आए
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