मुकाम-ए-इश्क़ मिलेगी तुझे...
कुछ हम बढ़ें, कुछ तुम बढ़ो।
यूँ ही अकेले पुरा नहीं होता,
साहित्य कोई भी प्रेम का...
चलो कुछ तुम गढ़ो, कुछ हम गढ़ें।
साथ उम्र भर का हो,ये मुश्किल नहीं..
कुछ हम कहें,कुछ तुम सुनो....
कुछ तुम कहो, कुछ हम सुनें।
-सनातनी_जितेंद्र मन