कोरोना महामारी के हाथों भारत में अनगिनत मौतें हो रही हैं। सत्ता पक्ष कौए की तरह अपनी शक्ति बढ़ाने के लालच में चुनाव पे चुनाव कराता जा रहा है तो विपक्ष गिद्ध की तरह मृतकों की गिनती करने में हीं लगा हुआ है। इन कौओं और गिद्धों की प्रवृत्ति वाले लोगों के बीच मजदूर और श्रमिक पिसते चले जा रहे है।आज के माहौल में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन कौओं और गिद्धों की तरह अवसरवादी प्रवृत्ति वाली राजनैतिक पार्टियों के बीच बदहाली बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही है। इस बदहाली का शिकार श्रमिक और मजदूर ज्यादा हो रहे हैं। आम जनता खासकर मज़दूरों और श्रमिकों की बदहाली पर प्रकाश डालती हुई व्य्यंगात्मक कविता प्रस्तुत है "कोरोना से हार चुके क्या ईश्वर से ये कहे बेचारे?"