झूठ का नकाब ओढ़े ज़िन्दगी
कभी न कभी तो डगमगायेगी।
खुशियों के पल खरीदोगे
तो उलझने भी साथ आएगी।
लोगो की बदुआएं लोगे तो
रात में नींद कहाँ से आएगी।
सर दर्द से फटेगा रूह कंपकंपायेगी,
साँसे लोगे तो दिल की धड़कन बड़ जाएगी।
डर के कदमों की आहट
अक्सर वक़्त बेवक़्त सतायेगी।
चाहोगे दुनिया से आज़ाद होना
पर आज़ादी रास न आएगी।
सारी उलझनों से दूर शांति से
सोना चाहोगे पर नींद कहाँ से आएगी।
- त्रिभुवन शर्मा..