एक दु:ख जो रोज शाम के वक्त दिन के खत्म होने पर होता है, और एक सुख हैं कि दिन का अंत फोन में कैद कर लिया है, जिसे बाद में देखकर याद कर सकता हूं। दोनों के बीच शाम के वक्त खुद को पाता हूं। मेरे फोन में अधिक तस्वीर शाम के वक्त की हैं। रोज सुबह की धुप रूम में आती हैं, फिर वापस लौट जाती हैं। नींद से उठने पर दिन आधा हो चुका होता हैं। देर से उठने से अब दिन छोटा लगने लगा हैं। आज-कल आसमान में बादल भी दिन को रात में बदलने दोपहर से चले आते हैं। बादलों के कारण दोपहर भी शाम जैसी लगने लगी हैं, और शाम रात के करीब। आज भी आसमान में दोपहर से काफी बादल छाए हुए थे। अंधेरा होने से लगा मानों बादलों ने दिन के साथ-साथ शाम को भी अपने में समा लिया हैं। आसमान में बादलों की उपस्थिति से शायद पुरा गांव मान चुका होगा, की दिन लोगों को अपने हिस्से की शाम दिए बगैर ही आज चला गया। लेकिन गांव के अंतिम छोर में दिन बादलों से संघर्ष करता हुए मिला। बादलों ने दिन को पूरी तरह पकड़ा हुआ था। एक आवाज आसमान में गूंज रही थी, जिसे बादलों में सूर्य की लालिमा के रूप में देखकर सुना जा सकता था, की दिन अभी भी हैं। हमेशा वक्त से पहले अंघेरा होना दिन का ख़त्म होना नहीं होता। जैसे-जैसे दिन बादल से बाहर आने लगता बादल का रंग भी सफेद से लाल होने लगा था। थोड़ी देर में दिन बादलों से बाहर निकलकर शाम के रूप में दिखने लगा था, जिसकी रोशनी हर घर के अतिम छोर पर पहुंचने लगी।यह सुखद घटना की तरह हैं, जब उम्मीद खत्म होने के बाद अचानक जीवित हो जाए। गांव में होने पर अक्सर शाम इस जगह पर होता हूं। इस जगह से शाम को अंतिम समय तक देखा जा सकता हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो सूर्य का घर दूसरा गांव ही हैं। मेरे लिए शाम को अंतिम समय तक देखना, किसी चिता को जलते हुए अंतिम समय तक इंतजार करने जैसा हैं। उस वक्त का दुःख दिन के चले जाने समान हैं। 🌻
तस्वीर - आत्मनिर्भर।