My Painful Poem..!!!
कोई चैन से सो रहा है
शहर बेचकर,
कोई सुहाग बचा रहा है
ज़ेवर बेचकर,
बाप ने भी उम्र गुजार दी
घरौंदे बनाने में,
बेटा साँसें खरीद रहा है
वही घर बेचकर,
कई घर बर्बाद हो गएँ है
दवाएँ खरीदने में,
कुछ लोगों की तिजोरी भर
गई जहर बेचकर,
हादसे भी अजीब है लाशें ली
अस्पताल बिल भर के,
उजड़े शहरों की ग़मगीन गली
रास्ता तक रहीं हैं,
राहगीरों के आव़न-ज़ावन की
बस्ती विरान कब तक,
एम्बुलेंसों की सायरनों से आज
ख़ौफ़ज़दा हैं हर बशर,
प्रभुजी कब तक चलेगा कारवाँ
मौतके कातिल खेल का,
मसलेहत जग पालनहार की तो
वही जाने पर माफ़ कर रब..!!
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