My Meaningful Poem..!!
यारों रोज़ रात को सिरहाने
सुलझा कर रखते हैं जिंदगी
फिर रोज़ सुबह ना जाने कैसे
उलझीं हुँई मिलती है ज़िंदगी
सुबहा के अख़बार 📰 पन्नों से
तनाव की उठतीं कातिल लहरें 🌊
कल तक कितने दिप़क बूझें
ओर कितने नयें मरीज़ भर्ती हूएँ
कितने ओक्सिज़न क़िल्लत
या वेनटिलेटर को तरसते रहे
कितने बिना बजट घर में ही
इलाज 💊 की कोशिश किएँ
कितने भूख-ओ-प्यासमें तड़पें
कितने घरों में चूल्हे तक न जले
कितने निजी वाहनों से आख़री
सफ़र की क़तारों में इन्तज़ार किएँ
न फ़िल्म न नाटक न संगीत पार्टी
न हर्षोल्लास न ख़ुशी से सरोकार
अजीब-ओ-ग़ज़ब मातम-सा छाया
यहाँ वहाँ हर-सूँ-चार-सूँ चारों-प्रहर
प्रभुजी क्या आपकी मनोकामना है
हम नहीं जानते पर अब बस कर दो
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