कविता
#जादुई चिराग
संभल संभल कर
ले रहे हैं आज हम सांस
पर बाकी है
जीने की आस
मन में कायम है विश्वास
दिल में है
खट्टे मीठे अहसास।
सपनो का कारवां
अभी रुका हैं
पर थका नहीं हैं
मंजिलों के बुलावे
आज भी सजा जाते हैं
सपनों का इंद्रधनुष।
उदासियों के स्याह घेरे
तोङ देते हैं हम
उम्मीद की किरणों से
खोल देते हैं
सकारात्मकता की
तमाम खिङकियां।
परेशानियों को
समेट लेते हैं
अपने गीतों में
गा लेते हैं
एक नज़्म बनाकर।
अंधेरे एक पल को
डरा जाते हैं
पर दूसरे ही पल
हम जला लेते हैं
ज़िंदादिली का
जादुई चिराग
जो हमें
देता है हौसला
और हम
खुली आंखों से
करते हैं
सूरज निकलने का इंतजार।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत