My Painful Poem...!!!!
आज नाकामयाबी को कामयाब
करने की ज़िद कर ली हमने
आज हारीं हूई शतरंज को जितने
की फिरसे ज़िद कर ली हमने
आज डूबें हूएँ हौसलोंसे टकरानेकी
रंजिश फ़िर से दूर कर ली हमने
जिस उम्मीद के सहारे जीदगीं थी
वो भी ख़ाक में मिला दी हमने
बेबसियों की लहरें मोड़ के तूफ़ाँ से
मुक़ाबले की ही ठान ली हमने
कुदरतकी कुदरती आफ़तोंसे लड़ा
है इन्सान बात यह मान ली हमने
टूट के भी न बिखरे हैं इतिहासों के
पन्ने बात वही दोहरा ली है हमने
काल-चौघडिंयों से टकराता आया
है इन्सान बात यह जान ली हमने
प्रभु है प्रभु पर किसका ज़ोर चलता
आजिजी आज अपना ली हमने
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