बढ़ती हुई दुनिया में हम अब भी यही ठहरे हैं
इंसानियत के कान अपने स्वार्थ के लिए बहरे हैं
चल तोह हम भी सकते थे वक़्त के साथ
किन्तु हमें पहले से पता था की तरक्की के घाँव बहुत गहरे हैं
आगे बढ़ते - बढ़ते रिश्ते कब्र बन गए
अपनों के बिना ही हम शोहरत के सरदार बन गए
बढ़ती हुई दुनिया में हम अब भी यही ठहरे हैं
इंसानियत के कान अपने स्वार्थ के लिए बहरे हैं
समय की हेर-फेर में हम अब भी यही हैं
एकांत में सोचना कभी हमारे रिश्ते कितने सही हैं
हर-पल हर-क्षण हम विनाश की ओर बढ़ रहे
सपनो की मंजिल में वर्तमान को अंगूठा दिखा रहे
अब और नहीं, थक कर सोचने के लिए
आज बैठा हु एकांत में, क्षण भर ही सही
होंठों की गहरी मुस्कान में
छलक उठा हैं दर्द गहरा, माँ-बाप भाई-बहना
रिश्ते बहुत अनुठे थे, तरक्की के लिए हम उनसे ही रूठें थे
बस अब और नहीं, जिंदगी को एहसास दिलाना हैं
सबसे प्यारी मेरी बहना हैं, माँ बापू का तोड़ नहीं
भाई सा गठजोड़ नहीं
इसीलिए मैं ठहरा हुँ, परिवार का एक पहरा हु
बीत जाये चाहे उम्र सारी रिश्तो के लिए ही में
काल एक सुनहरा हुँ
✍️ bdvaishnav