मेरे कुछ कहने से पहले कभी तुम भी समझ जाया करो।
काम करते थक जाऊँ तो कभी तुम भी हाथ बँटाया करो।
जरूरी नहीं कि हर वक़्त एक जैसा ही रहे जिंदगी में सदा।
बीत न जाये खुशी के पल मेरे संग तुम भी मुस्कुराया करो।
त्योहारों का क्या वो तो क्रम से साल दर साल ही आते हैं।
कभी गालों पर बिना होली के भी गुलाल लगाया करो।
जरूरी तो नहीं कि हर बात बहस का मुद्दा ही बनती रहे ।
अगर कभी मैं चुप रहूँ तो कभी तुम भी समझ जाया करो।
यह जरूरी तो नहीं कि प्रेम में मिलन ही होता हो हमेशा।
कभी ख्वाब में तो कभी चाँद बन कर छत पर आया करो।
भगवान सब को खुशी ही दे ये कहाँ मुनासिब होता है।
इल्तिज़ा इतनी की जब भी मिलो गले लग जाया करो।
-Arjun Allahabadi