रो रो कर चीखती रही चिल्लाती रही
सोलह साल में साज श्रृंगार सजी हुई !
मेरी दसवी का परिणाम तक नहीं आया
और यहां मेरी डोली उठने वाली थी ;
सुन बेटा, गलती तो थी नहीं मेरी कोई,
घर वालों को गलतफहमी थी !
पर तेरे साथ कभी ना होने दूंगी ऐसी अनहोनी
मेरी आखिरी परीक्षा में एक सवाल का उत्तर ढूंढने ,
आया था घर मेरे सहपाठी ,यह जान बाबा ने समझा कुछ ,
अब तो होगी बदनामी इस लड़की के कारण !!
आखरी परीक्षा कि ठीक दस दिन बाद ,
दस साल बड़े आदमी को मेरे गले लटका दिया ,
बस मात्र दस लाख की दहेज के साथ !
अफसोस तो बहुत है फिर भी वादा है ,
इन झमेले में तुम्हें ना पड़ने दूंगी !
एक मां हूं एक बहू भी हूं ,
पर बेटी के सपनों की कदर कर सकूं
एक औरत भी तो हूं !!
Urmi❤