आज एक ख्वाब फिर टुटा है,
किसी ने उसे फिर लूटा है|
बंद आँखों में था उसका बसेरा,
वो तो सहेमा सदा अकेला |
जब वो निकला घरसे बाहर,
डरके निकला हुवा वो आहत|
आसमान छू ना उसकी चाहत,
कभी ऐसी उसे मिली न राहत|
आंख खुली सुबह जैसे न तूला,
आयु उसकी है कहाँ वह भूला|
हर एक ख्वाब कहाँ पलता है,
अपनी लौ में खुद्द जलता है|
आखिर तो कहना पड़ता है,
उसको भी सहना पड़ता हैं|
आज एक ख्वाब फिर टुटा है,
किसी ने उसे अाज फिर लूटा है|
-Dr.Sarita