◆◆देवी मत कहो◆◆
दर्जा देवी का कभी मैंने माँगा नहीं
खुद को इतना शसक्त मैंने जाना नहीं
मैं खुश हूँ कर्तव्यों में उलझी हुई
मुझे औरत ही रहने दो
टूटकर भी मैं बिखरती नहीं
दर्द से मुँह फेरती भी नहीं
मैं खुश हूँ रिश्तों में जकड़ी हुई
मुझे औरत ही रहने दो
बात सम्मान की रहने भी दो
ये बातें आज़ादी की रहने भी दो
मैं खुश हूँ चारदीवारी में सहमी हुई
मुझे औरत ही रहने दो
बात कड़वी है पर मुझे कहने दो
दे सको अगर कुछ तो सुरक्षा दो
मैं खुश हूँ विचारों के भंवर में फंसी हुई
मुझे औरत ही रहने दो
मुझे मेरी क्षमताओं में ही रहने दो
दुर्गा,काली,लक्ष्मी मत मुझे तुम कहो
मैं खुश हूँ सीता सी परीक्षा में तपती हुई
मुझे औरत ही रहने दो।
★★★
प्राची मिश्रा