My Meaningful Poem..!!
अज़ीज़ इतना ही रक्खो
कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो
कि दम निकल जाए
जीदगीं मिलीं ही है इन्सानी
बशर को प्यार के लिए
मगर ख़्याल रखो कि दामन
सब्र का ही छूट न जाए
मिझान में मिज़ाज को रखो
अपने दिली सुकूँ के लिए
तकलीफ देह होती बेपरवाही
इश्क़ में बात ध्यान रखिए
हर पल यार के ख़्याल में रहिए
पर प्रभु से भी रिश्ता रखिए
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