My Wonderful Poem ....!!!
सौदेबाजी का हुनर कोई उनसे सीखे
नायाब-सा गालोंका तिल दिखा कर
संगदिल हर्रजाइ सीनेका दिल ले गयी
इबादत-औ-सजदोमें शामिल हो गयी
रुबरु तो होते रब से पर नज़र वही आए
लगी दिलकी भी अजीब लगी जीते जी
काफ़िर ख़याल-औ-आमाल कर गयी
मुफ़लिसी-ए-मजनु-सी हाल कर गयी
परवाज़-ए-बुलंदीसे तंगहाली कर गयी
दौलत-ए-यारीकी जेब ख़ाली कर गयी
अपने-पराये की दिवार ढाए चली गयी
घरके हर दिलकी रानी बनती चली गयी
जाने कितने बादशाहोंको ग़ुलाम कर गयी
वाह कया नायाब-सी संनतराजी है तेरी..
ए रब..!!
बनाके आदमकी पसलीसे नारी तुने कर
दी दोनों जहाँकी खाना आबादी बेशक..!!
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