My Spiritual Poem...!!!
लहूँ जब भी ज़ोश में बहता है
या ग़ुस्सा या दम ही घूँटता है
रवानी-ए-लहूँ एसे ही बढ़ता है
दिल की दिवारें सुर्ख़ करता है
बेवजह तो धड़कने तेज़ नहीं
हो जातीं ज़हन बेक़ाबू होता हैं
इन्सान आपे से बहार होता हैं
अच्छे बूरें दायरेके बहार होता हैं
न करनेवाले काम कर गुज़रता है
अनजानेमें पश्चातके बीज़ बोता है
नुक़सान ख़ुदकी सेहतका होता हैं
हर अपनों को भी तकलीफ़ देता है
ग़ुस्सा या दिल का दौरा जो भी हो
जब तक क़ाबूमें सुकून देह होता है
पर ग़र क़ाबू बहार हो जाता हैं तो
या अपाहिज करता या जान लेता है
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