मन की बातें मन ही जानें।
मन माने मन पहचाने है।।
मान का सम्मान का
कहो तो प्यारे भय किसे है।
आस लगती है वहां मनोभाव मिल जाता जहां।।
दिखती मुझे चहुँ ओर ईक मुस्कान बिखरी है।
इस चंचल मन का हुआ जबसे मेरा कृष्ण पहरी है।।
फिर क्या रहिमन कहें,काह कहें कबीर।
रंग श्याम में रंगा,जब मेरा मन भयो फकीर।।
-सनातनी_जितेंद्र मन