●कहानी
यूँ कहुँ तो जिंदगी अधूरी भी नहीं और तुम तो समजदार हों मेरी ग़ज़ले पूरी भी नहीं..,
मोहब्बत में चाहें कितने भी फांसले हों मग़र ये किसने कहाँ जमीं को आसमाँ ज़रूरी नहीं..?
कुछ गुस्ताख़ लम्हों ने उसकी यादों को छेड़ा हैं और रात ने कहाँ-सिसकियाँ मज़बूरी नहीं..,
दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये मग़र क़ातिल भी कैसे कहुँ हाथ में उनके छुरी भी नहीं..!
ख़ैर फ़ैसला था उनका फ़ुरकते गुज़ारने का ऊपर से इश्क़ हीं मिला था उनको दूरी नहीं..,
ये अलग बात हैं कि मैंने भी फ़ैसला मंज़ूर कर लिया उनका हर बात पे बहश भी ज़रूरी नहीं..।
बिछड़कर उनसे ख़ुद क़ातिब बन गया ये मेरी शिकस्त-ए-हल-ओ-ईजाद था-समज़दारी नहीं..,
सुना हैं मेरी लिखावटों में रातें अंधेरी और बातें ग़हरी होती हैं तो सुनो गुज़री ज़ुबानी हैं-ये अदाकारी नहीं..!
हालांकि ये जो ज़ाम-ए-गिलास हैं सुकूँ हैं मेरा उनकी आँखों को मैख़ाना लिखूँ-मश्क़री नहीं..,
ग़ज़ल-ओ-नज़्म तो बहोत दूर की बात हैं ये "काफ़िया" की कहानी हैं कोई शेर-ओ-शायरी नहीं..!
#TheUntoldकाफ़िया