वाह रे किस्मत तूने भी क्या खूब खेल दिखाया है।
मिटाऊं भी कैसे दाग पानी का जो लगाया है।।
अरसे बीत गए यूं गम में खुशियां ढुंढते ढुंढते;
पर खुश हूं, आज खुशी से गम को गले लगाया है।।
बहुत प्यार से सजाया था,
उम्मीदों के बगीचे में, खुशी के कुछ फूल।
देखो,आज वो भी मुरझाया है;
लगता है वो खुद से शर्माया है;
शायद चोट उनके दिल पे भी आया है।
ओह! छोड़ो, रब्त जिरह से कब बच पाया है।।
- राहुल अविनाश