"वेस्ट डायरी"
सुनो, धूल जम गई है मुझ पर कभी तो साफ करदो ना।
हा माना अब मैं तुम्हारे काम की नहीं हूं सारे पन्ने भर गए है मेरे,
लेकिन कभी तो आकर मिल लो ना,कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी बातें करलो ना।
जितनी पहले थी तुम्हारे लिए उतना ही जरूरी अब भी कर लो ना,
तुम्हारा दिन केसे गुज़रा तुमने क्या - क्या किया थोड़ी बातें कर लो ना।मुझे साफ करके एक बार अपने बैग में रखलो ना।
अपने दिल की बातें करो शायद अब इतने काबिल नहीं हूं,
लेकिन ये भी तो सोचो तुम्हारे अलावा और किसी को हासिल भी तो नहीं हूं।
वो शाम की एक प्याली चाय मेरे साथ पिलो ना,
धूल जम गई है मुझ पर कभी तो साफ करदो ना।
तुम चाहते तो थोड़ी जगाह बना सकते थे ,
कुछ नए पन्ने मुझ में लगा सकते थे।
चलो कोई नहीं तुमने ऐसा नहीं किया, अब काम से काम एक नया कवर ही लगा दो ना।
धूल जम गई है मुझ पर कभी तो साफ करदो ना।
(ईशिका बंसवाल)
-Ishika