"मन स्वप्न"
मन स्वप्न देखता रह जाएगा,
संग अपनी भाषा केह जाएगां।
हो जाए पुतलिया सागर सी,
नैनों से गागर बेह जाएगा।
जब अंदर अंदर से कोई,
हर दफान राज खोलेगा।
तो अंबर में कंपन हो जाएगा,
धरती का संयम डोलेगा।
लेकिन यदि आप सचेत हुए,
पतझड़ बाहर हो जाएगा।
तन में पवित्रता आएगी,
मन मोक्ष द्वार हो जाएगा।
आभा मंडल बह जाएगा,
युग का श्रींगार हो जाएगा।
✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏