कामरेड,तुम कॉरपोरेट्स के नहीं,भारत के दुश्मन हो !
ज्योंहीJIO ने ऐलान किया कि 100 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से 5G पूरे विश्व में शुरू करने की क्षमता प्राप्त कर ली है,चीन में हड़कंप मच गया।क्योंकि अब तक 5G में चीन की HUAWEI Company की मोनोपली थी और चीनी सरकार पूरे विश्व में HUAWEI 5G Launch के सपने को साकार करने में जुट गई थी।TRILLIONS OF DOLLARS की बरसात चीन में होने वाली थी।
आनन फानन में भारत के चीनी गुलामों को हुक्म हुआ कि किसी भी कीमत पर JIO को बर्बादी की ओर धकेलने के लिए आंदोलन किया जाए और खरबों डॉलर का चीनी फंड इस काम के लिए भारत में भेजा गया।जिसके परिणामस्वरूप पंजाब में JIO TOWERS ध्वस्त किए जाने लगे और पानी पी पीकर जियो को किसान आंदोलन के दौरान कोसा जाने लगा।
कैसे मोदीनगर को बर्बाद किया गया-
1945 में बेगमाबाद का नाम बदल कर मोदीनगर किया गया था,पूरे देश से लोग अपनी रोटी की तलाश में मोदीनगर की मोदी मिल्स में नौकरी करने आते थे।
उद्योगपति श्री गुर्जरमल मोदी का वह साम्राज्य था।मोदी पोन, मोदी टायर,मोदी कपड़ा मिल,मोदी वनस्पति,मोदी चीनी मिल और फिर मोदी हॉस्पिटल,मोदी धर्मशाला, मोदी कॉलेज, मोदी ये... मोदी वो...।
फिर एक दिन लाल झंडे वाले वहां आए,वैसे ही जैसे पंजाब के किसानों के साथ आजकल नज़र आते हैं।उन्होंने मजदूरों को समझाया कि कैसे वर्ग संघर्ष में मिल मालिक, तुम मजदूरों का शोषण करता है,तो चाहे मोदी उन्हें मंदिर,कॉलेज,अस्पताल, घर, विवाह के लिए भवन,यहां तक की घर की पुताई के पैसे तक दे रहा हो,लेकिन असल में वो उनका शोषण कर रहा है।
और फिर शुरू हुई क्रांति,बताया जाता है कि एक बार जब मोदी साहब की पत्नी मंदिर गईं, तो मजदूर नेताओं ने कपड़े उतारकर उनके सामने नग्न-प्रदर्शन किया।
उस दिन के बाद मोदी नगर फिर कभी वैसा नहीं रहा।चीनी मिल को छोड़ कर एक-एक करके सारी मोदी इंडस्ट्री वहां से उठा ली गई।चीनी मिल आज भी बची हुई है क्योंकि किसानों ने लाल झंडे वालों को कभी क्रांति करने ही नहीं दी।
जिस मोदीनगर में देश के कोने कोने से लोग नौकरी करनेआते थे,आज उसी मोदीनगर के लोग बस-रेल में भेड़ बकरियों की तरह भर कर साधारण सी नौकरियां करने दिल्ली-नोएडा- गाजियाबाद जाते हैं !
80 के दशक में खलिस्तान आंदोलन चलने के पहले पंजाब देश का सबसे समृद्ध राज्य था।खलिस्तान आंदोलन से बहुत ज्यादा तादाद में इंडस्ट्रीज पंजाब के बाहर शिफ्ट हो गई। जो बची हुई है वो अब शिफ्ट हो जाएंगी।
1982 मे मुंबई में दत्ता सामंत की युनियन ने मिलों में हड़ताल करवाई,जो 2साल चली और सारी मिलें बंद हो गई। लाखों मजदूर और उनके परिवार बर्बाद हो गये।
पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में लगने वाली टाटा नैनो की फैक्ट्री जिसमें वहां के पन्द्रह हज़ार लोगों को प्रत्यक्ष नौकरी मिलनी थी,शउसे भी ममता बनर्जी के संगठित भीड़ तंत्र ने फर्जी आंदोलन द्वारा बंगाल से गुजरात शिफ्ट होने के लिए मजबूर कर दिया।
बंगाल के ऐसे सभी आंदोलनों का नतीजा- बीमारू बंगाल।ये एक ऐसी विचारधारा है,जिसमें विश्वविद्यालय का कुलपति, मिल मालिक, कॉरपोरेट और देश का प्रधानमंत्री अपना दुश्मन दिखाई देता है और कब्र (योगी की, मोदी की, बीजेपी की और हिन्दुत्व की) खोदने के लिए विध्वंसकारी दिवानापन है।
पता नहीं मोदी, योगी, भाजपा और हिंदुत्व की कब्र खुदेगी या नहीं पर अगर ये लाल दीमक का पेस्ट कंट्रोल नहीं किया तो हमारी आने वाली पीढ़ियों की कब्र अवश्य खुदने वाली है।
हत्या एक खूबसूरत शहर का - वामपन्थी कारगुजारी और कांग्रेस की राजनीति।
कानपुर-कॉटन,पटसन (जुट), रेशम, उन, चमड़ा और मशीनों के कल पुरजो का उत्पादन करने वाला शहर जिसको कभी मानचेस्टरऑफ़ ईस्ट कहा जाता था।बड़े बड़े उद्योग,देश विदेश से कच्चा माल लाके उत्पादन करने वाली बड़ी बड़ी औद्योगिक इकाइयां। IIT जैसे बड़े शैक्षणिक संस्थान से निकले इंजिनियर इन उद्योगों की शोभा बढाते थे।यहां का बना माल विश्व विख्यात था,पूरे विश्व में भेजा जाता था। लाल इमली और NTC बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़े हुए थे।
लाखों की संख्या में दूर दूर से रोजी रोटी के लिए मजदूर, कुशल और अकुशल कारीगर आते थे। मुंबई और मद्रास जैसे शहर भी इस कानपूर से रंज खाते थे। यहां सुदूर दक्षिण भारत से लोग काम करने आते थे।80 के शुरुवाती दशक में कानपुर को नज़र लग गई।वो कोई जादू टोने टोटके वाली नज़र नहीं, राजनीति की नज़र लग गयी। कम्युनिस्ट और कांग्रेसियों गैंग की राजनीती की भेंट चढ़ गया कानपुर।क्योंकि वहां पर मजदूर ज्यादा थे इसलिए मजदूर एकता और मजदूर की भलाई के नाम पर कम्युनिस्ट की CITUऔर कांग्रेसी INTUC पूरी तरह से यहां पर मजदूरों को अपने साथ शामिल होने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाती रहती थी।
शुरू में कम्युनिस्ट मजबूत थे, कानपुर से हमेशा कम्युनिस्ट ही सांसद होता था लेकिन ये दूसरे पक्ष को मंजूर नहीं था और कम्युनिस्ट ये कुर्सी छोड़े वो उनको मंजूर नहीं था। इस तरह से मजदूर एकता छिन्न भिन्न होती गयी, दो धड़े बन चुके थे। जब एक काम करता तो दूसरा हड़ताल,बहुत कम ही दोनों के धड़े एक साथ काम करते थे और फिर इनकी लड़ाईयां जो की आम बात हो चुकी थी।राजनैतिक हत्याएं चरम पर थी। पिसते थे मजदूर, जीने के नाम पर ये सारी कवायद होती थी। बात इतनी बढ़ चुकी थी की महीने में बमुश्किल 15 दिन ही कोई भी फैक्ट्री चलती थी।अगर हड़ताल तो हड़ताल।कोई जाएगा काम करने तो उसकी पिटाई, चाहे बच्चे भूखे हों, चोरी करने या मर जाने की नौबत हो - बंदी तो बंदी ... ।
और फिर एक दिन अचानक 1981 में बंद हो गई एक साथ 27 मिलें,धीरे धीर और भी इकाइयां अगले 2 माह में बंद हो गई।बेरोजगार हो गए कुछ हज़ारों लोग नहीं बल्कि लाखों लोग। सत्ता परिवर्तन हो गया।1984 में सांसद जी दुसरे दल (कांग्रेस) के हो गए,कांग्रेस की ये कानपूर में कामयाबी। इस कामयाबी में छिपी थी लाखों की बेरोजगारी, लाखों बच्चों की भूख, मेहनतकश मजदूर से चोर बनते दो हाथ,आत्महत्या करते मजदूर।1981में इसी तरह मिल बंद होने पर हमारे मित्र का परिवार भी चल पड़ा वापस मुजफ्फर पुर।पीछे पीछे आये 63 परिवार जो की किसी सूरत में कानपुर में नहीं रह सकते थे।
गांव पहुंच कर ये परिवार मुझे याद है कि शायद दो महीने रहे होंगे फिर जैसे जैसे मुखिया की नौकरी कलकत्ता,मुंबई, कोटा, लुधियाना या सूरत में लगता गया तो ये परिवार भी धीरे धीरे चले गए और इस तरह हो गई एक शहर की हत्या, छीन लिया गया लाखों के मुह से निवाला,बेघर कर दिए गए महिलाएंऔर बच्चेऔर वो भी किसलिए मात्र राजनैतिक कुर्सी की लड़ाई के लिए।लाखों को वेरोजगार बनाने वाली कांग्रेस और मजदूरों का निवाला छीनने वाले कम्युनिस्ट मनरेगा और फूड गारंटी योजना लाये।कहां गए थे ये लोग?क्या हो गया था गरीबों की आवाज उठाने वाले ये कम्यूनिस्टों को?सब के सब दलाली में मस्त थे, चन्दा चाहिये था मिल मालिकों से इस एवज में की काम चलने देंगे।चंदा और दलाली इस एवज में भी कि मिल बंद करवा देंगे।ये है असली चेहरा इनका।असली चेहरा ढकोसलेबाज कम्यूनिस्टों की।ये है असली चेहरा इन कमबख्त कांग्रेसियों की।लाखों की हत्या करने वाले,बेरोजगार करने वाले और गरीबी में अपने सब कुछ हारे हुए मजदूरों से उनकी जिंदगी भी छीन लेने वाले ये राजनीति के ठेकेदार। यही है इन गरीबों, मज़दूरों, शोषितों और वंचितों की राजनीती करने वाले कम्यूनिस्टों और कांग्रेसियों का।
कम्युनिस्ट वो कैंसर है जो अराजकता में पनपता और तेज़ी से फैलता है।जहां अराजकता, मार काट और बवाल होगा वहां ये कैंसर पैदा होते हैं।इनको पहचानिये और अपने बीच से भगाइये अगर देश और समाज का भला चाहते हैं तो अपने अंदर का कम्युनिस्ट भी मार डालिये।
-Sanjay Singh