शब्दों की संजीवनी
"अचानक ही जिंदगी के सफ़र में तुम टकराए थे।
काम करते करते हम दोनों और करीब आए थे।
जब तुमने दोस्ती का प्रस्ताव रखा,
मैंने दिल से स्वीकार किया।
तुम ने कहा मित्र तुम को हमने मान लिया है।
तुम ही मेरे सच्चे हितैषी यह हमने जान लिया है।
मेरे अंदर छुपे जज्बातों को तुम ने पहचान लिया।
तुम ने खामोशी अपनी तोडी थी।
भेद दिल के तुमने सारे खोले थे।
बस कुछ ही समय में हम दोनों ने,
गाँठें अपने दिल की सारी खोली थी।
तेरे हर शब्द को सुनकर, मन कुछ बैचैन सा हुआ।
मेरे शब्दों को सुनकर सीने में तेरे शूल सा चुभा।
शब्द हमारे सुनकर कानों मेंं,
पिघलते काँच की तरह तुम को महसूस हुआ।
आँखों से अश्रुधारा खुद ही बहने लगी।
वर्षों से छूपे दर्द का सैलाब,
तेरे शब्दों के प्रवाह में आकर फूट पड़ा।।
सच कहूँ तो तुम्हारे कहे हर शब्द
मेरे लिए संजीवनी बूटी ही साबित हुआ।
मन में नयी उर्जा का संचार हुआ।
बिखरे हुए अस्तित्व को सम्हाला,
क़दम नयी मंजिल की ओर बढ़ाया।।"
अम्बिका झा 👏
-Ambika Jha