क्या हक़ीक़त है क्या फ़साना है
इसी में उलझा ये पूरा ज़माना है
कोई सच कह के झूठा है यहां
तो कहीं झूठ से रिश्ता पुराना है
सच्चाई को जानना पुरानी बात
अब झूठ में ही खुश ज़माना है
बहुत बोलती थी जुबां तो सच थी
अब ख़ामोशी में छुपा फ़साना है
बदल ही दिए वक़्त ने कई दायरे
सच तो है, टिकता कहाँ पुराना है
-Broken_Feather