"चुभन"
अंदर बाहर बड़ी घुटन है,
मुरझाया मुरझाया सा मन है।
इस दुख की तस्वीर यही है,
हर चेहरा टूटा दर्पण है।
गले से लगते है हसकर,
मन में तो बेगाना पन है।
कांटे तो कांटे है लेकिन,
फूलो में भी बड़ी चुभन है।
अंगारों पर राख जमी है,
फिर भी उसमे बड़ी तपन है।
रिश्तों के जंगल से अच्छा,
शायद घर का सूनापन है।