My Motherhood Poem...!!!
भूख से में तिलमिला जाऊँ
तो बेतहाशा तड़प जाती
यकायक सीने से लगा माँ
जब दूध-दलिया पिलाती
रालियों पर तो मानो रेलों
की धारा-सी ही बह जाती
लब तो लब गालों पर भी
धार बन वह चिपक जाती
जो गाल बार बार माँ बड़े
नाजों से साफ़ करती रहती
क्या ख़ूब फ़िक्र हर वक़्त
बस एक माँ ही करती रहती
ठंडी रातों को गिले बिस्तर
पर बेझिझक ख़ुद सो जाती
ओर हमें सर्दी-जुकाम के
ख़्याल तक से भी वह बचाती
प्रभु की रचना मानो माँ नहीं
साक्षात देवी-सी नज़र आती
जीवन के हर बूरे वक़्त में माँ
ही हर संभव प्रयास कर जाती
हर कठिनाई-ओ-मुश्किल का
दट़ के मुक़ाबला वह कर जातीं
एक माँ ही एसी शक्ति हैं जो
प्रभुसे भी वक़्त आने पे लड़ जातीं
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