My Wonderful Poem..!!!
चेहरे पे चेहरे सज़ाएँ फिरते हैं लोग
मासूम चेहरे पे मुखौटे पेहने हैं लोग
असली-नक़ली खेल में उलझे लोग
लकीरोंके ही फ़क़ीर बने फिरते लोग
रिश्तोंकी किश्तोंमें लाभ खोजें लोग
लहूँ के भीतर भी तितर-बितर हैं लोग
अपनापन संस्कार सीमा छलाँगे लोग
युवा-धन के नित नएँ फ़न कुचले लोग
हरकतों से बरकतें खोते जातें हैं लोग
आदमी-इन्सान फ़ासले मिटाते लोग
प्रभुजी तो प्रभुजी हैं देखत जानत सब
पर मौक़े पे तो प्रभु को भी परखते लोग
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