प्यार को यूँ ही पूजता है कोई!
ला-दवा मर्ज़ झेलता है कोई!
यूँ तो शायद ही जानता है कोई!
फिर, मुझे क्यूँ पुकारता है कोई?
हम-नवाई की चाह में, फिर से,
खुद की परछाई मांगता है कोई!
दाग है अपने चेहरे पे, और;
आईने को ही तोड़ता है कोई
नाम ही तो बचा के रक्खा था,
लो! उसे भी उछालता है कोई!
-Parmar Bhavesh