स्मृतियों में कौंधता एक चेहरा
बीतते जीवन के साथ,
अचानक किसी रोज
जब स्पर्श करती हैं
बारिश की बूंदें धरती को,
हवाओं में फैलता है
कोई परिचित सा गंध,
और तभी कौंधता है
स्मृतियों में एक चेहरा
जो टटोलता है अंतर को
और जगा जाता है
सोलहवें साल को,
बीते पलों को,
पुरानी किसी धुन को,
या फिर किसी खोई हुई
प्रिय किताब की याद को,
और उसमें चिह्नित पंक्तियां को,
पुरानी डायरी में उतारे गए
कई सारी प्रेम कविताओं को,
खतों में व्यक्त छटपटाहटों को,
प्रतीक्षाओं और बेचैनियों को,
और कई सारे जगहों को,
जहां आज हम नहीं हैं
पर उनमें हम जिंदा हैं
स्मृति में कौंधते चेहरे की तरह।