वो कोई मामूली अंगूठी नहीं
हम दोनों के प्यार की निशानी थी।
जो जुबां से कह ना सकूँ
वो अनबुझ कहानी थी..।
खो दिया था मैंने अंगूठी,
या यूँ कहें जो मोहब्बत की निशानी थी।
उसे खोकर भी मैं तुम्हें बचा नहीं पाईं थी।
ना मोहब्बत ना मोहब्बत की कोई निशानी बची...
फिर भी देखो कैसे मेरी जिंदगानी बची।
मैं भी जिंदा हूँ या चलती-फिरती लाश कोई?
ना तो कोई शिकवा ना कोई आरज़ू ही बची।
अम्बिका झा 👏
-Ambika Jha