"जिंदगी छोटी दिन लंबे"
गम-ऐ-दर्द में दिन नहीं साल गुजर गए,
जिंदगी छोटी और दिन यूं लंबे होते गए।
दुखी ना हो आप मैंने तकदीर ही ऐसी पाई,
खुदा का लिखा उसको कोई बदल ना पाए।
कर्म तो ऐसी कोई किए नहीं ,
मगर दर्द-ए-ग़म जले मैंने कई।
सोच रहा हूं मैं अक्सर रातों में ,
नींद नहीं आती जब तन्हाईयों में।
शायद पुनर्जन्म की बात हो सही
और कर्म हो पिछले जन्म के कई,
शायद फल मिल रहा हो मुझे अभी।
कब खुशी में ने एक पाई यह मुझे पता नहीं,
जब आस होती है एक खुशी पाने की,
दुश्मन सारे जहां की उलझाने साथ लाई।
खयालों में भी हम उमंगों की आस करते नहीं,
क्योंकि ख्वाब भी अब मुझे हसीन आते नहीं।
कितना कहें और कितना सहे अब "मित्र" हम,
क्योंकि सहनशक्ति अब मेरी जवाब दे रही।
{✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏}